ए खुदा
मासूमियत और जिंदादिली सिखाके!
जीना तो हर लमहे को खुलकर,
खुशियों हर गली में थी बांटनी,
क्योंकि जाना था कई मुस्कुराहटें फैलाके,
क्योंकि जाना था तुझसे किया हर वादा निभाके!
यहां आई तो पता चला इंसान तेरे बुरी तरह उलझे पड़े हैं
यह तो जिंदगी को समझने में लगे हैं!
इन्हें खुशियों से अपनी झोली नहीं
पैसो से अपनी जेबे हैं भरनी,
दिल किसी का चूर-चूर ही क्यों ना हो जाए,
इन्हें तो बस अपने ही मन की है करनी!
आगे निकलने की दौड़ में
कितना कुछ यह पीछे छोड़ते जा रहे हैं,
रुपया और रुतबा कमाकर भी
कितना वक्त और कई अनमोल रिश्ते यह गवा रहे हैं!
ए खुदा, रोता है मेरा दिल यह सब देख कर यहां
अनसुना कर देते हैं यह सब जो मैंने इनसे कहा!
माफी चाहती हूं तुमसे किया वादा अब मैं नहीं निभा पाऊंगी, समझ नहीं आता कि तेरे इस बहके हुए,
उलझे हुए इंसान को
मैं नाचीज अब कैसे समझाऊंगी!
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